कैसे खेली है तुमने होली,
नहीं समझ होगी तुममे ?
नहीं रहा होगा इंसानों से प्यार,
तब तो करते रहे स्वहित के लिए,
मौतों का इंतज़ार, इन्तजार।।
समझो तुमने
अपने अपने सपने को,
सजाने के लिए,
सवारने के लिए,
इंसानियत की बलि दे दी।
इंसानों को दांव पर लगा दिया।
तड़पते हुए लोगो को नकार दिया,
जिन्होंने समझा था तुम्हे,
भगवान्, मसीहा ............
और ना जाने क्या- काया?
कुछ पल जीने को,
अपनो के सुनहरे पलों के लिए,
अपनो के लिए,
कुछ शेष, अवशेष कार्यो के लिए,
जीना चाहते थे,
सपने पूर्ण करना चाहते थे।
लाचार सी नजरें निहार रही थी।।
तुमने नकार दिया,
उनके जीवन से खिलवाड़ किया।
उनकी आशाओ पर तुशाराघात किया,
व्याघात किया,
कुछ लाचारों को अपने सुख के लिए,
जीते जी मार दिया।।
सोचो के सपनों को मार कर,
किसी के जीवन को हर कर,
मानव की जान की कीमत पर,
तुम्हे और तुम्हारे भविष्य को
कुछ क्षण भले ही मिले हो,
लेकिन जीवन देने के काम को,
उसके ईमान को,
तुमने मार दिया।।
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